आ कि तुझ बिन बज्म-ए-यारों में भी घबराता हूँ मैं,
अपनों की महफिल में खड़ा गैर हो जाता हूँ मैं,
बिन तेरे सारा जहाँ नाशाद सा लगता मुझे,
सू-ए-मंजिल से दफअतन यूँ ही भटक जाता हूँ मैं,
अपनों की महफिल में खड़ा गैर हो जाता हूँ मैं,
बिन तेरे सारा जहाँ नाशाद सा लगता मुझे,
सू-ए-मंजिल से दफअतन यूँ ही भटक जाता हूँ मैं,
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