Monday 11 July 2016

"आँखें"

मन  की बात  खुदा ही  जानें  आँखें  तो दिल  की सुनती हैं,
जिनसे पल भर की दूरी रास नहीं उनसे ही निगाहें लड़ती हैं,

दिल भँवर बीच यूँ  फँस  जाता  साँसें भी मुअस्सर ना होतीं,
आँखो आँखों के   खेल में  बस  हर रोज सलाखें मिलती हैं,

बज्म़-ए-गैर में  जब जब दिल-आवेज़  नज़र कोई आता हैं,
बयान-ए-हूर  में  उनके  येें  आँखें   ही   कसीदें   पढ़ती  हैं,

रंज-ए-गम  के  अय्याम   यूँ  ही  हँसते  हँसते कट  जाते हैं,
बिस्मिल की गफ़लत आँखें जब महफिल में नगमें बुनती हैं,

खाना-ए-गुल-ए-ना-शाद में गर  कुछ भी  उधारी रह जाता,
इक  तार-ए-नज़र  भर  से  ही  ये  आँखें  तक़ाजे करती हैं,

Saturday 9 July 2016

ये प्यार हटा दो तुम दिल से कहीं धोखा ये दे जाये ना

ये प्यार हटा दो  तुम  दिल  से  कहीं   धोखा  ये  दे जाये ना,
कसमों वादों और बातों  में कहीं  रात   गुज़र  ये  जाये ना,

सच बोलूँ तो है प्यार बहुत कहीं आँखों से छलक ये जाये ना,
दिल से दिल की इन  बातों में  कहीं  दिल ही टूट ये  जाये ना,

बड़ी देर से  मैं भी  मुन्तजिर  हूँ बड़ी  देर  लगा  दी आनें में,
गर  इतनी  देर  लगाओगे  तो  जान   निकल   ये  जाये  ना,

इस रंग  भरी   दुनिया   में   तुम   बेरंग   नज़ारे   ना   देखो,
इन आँखों को तो तुम  ढ़क लो कहीं घायल ये कर जाये ना,

ये अदा है ज़हर है या रूप नया इस बात को ज़रा बता जाओ
यूँ  होठ दबाओं ना दाँत तले कहीं जंग अभी  छिड़ जाये ना,

पसे-मर्ग ना पढ़ो  कसीदा  तुम ये दोज़ख  में  हमें  सतायेंगे,
पर्दा कर लो  तुम  चेहरे  पर  कहीं चाँद भी  शर्मा  जाये ना,

गैरों   से  नहीं  हैं पर्दा  गर   तो  हम  से  ही ये शर्माना  क्यों,
यूँ छुप छुप कर ना देखो यार हमें कहीं प्यार हमें हो जाये ना

उँगली  थामों या  हाथ पकड़ दरिया-ए-इश्क तुम पार करो,
बर्षों से  मुसाफिर  भटक  रहा  कहीं  राह  भूल ये जाये ना,


Saturday 2 July 2016

"ना तो इन्कार करते हैं ना ही इकरार करते हैं"

ना  तो  इन्कार  करते हैं ना ही  इकरार करते हैं,
मेरी  हर अताओं  को  सरज़द स्वीकार करते हैं,

हया की तीरगी को वो नज़र से  खा़क  करते हैं,
भरी महफिल में भी मुझसे निगाहें चार करते हैं,

मेरी  हर  अजाँओं  को निगाह-ए-पाक करते हैं,
मेरे हर अल़म को  भी  जलाकर  ऱाख  करते हैं,

अहद-ए-हवादिश में भी तबस्सुम-जा़र करते हैं,
मेरी  हर सदाओं  को  सुपुर्द-ए-ख़ाक  करते  हैं,

कैद-खानें   में   ही   सही    मेरे   तिमसाल   से,
वो       गुफ़्तगू      दो      चार       करते      हैं,