Saturday 26 November 2016

हमीं से हम नहीं हैं गोे तुम्हीं से तुम नहीं होते

हमीं  से  हम  नहीं  हैं गोे  तुम्हीं  से तुम नहीं होते,
समझदारी अब इसी में हैं रवाँ अब हम कहीं होते,

कटेगा  वक्त  कैसे जब  साथ  गर  तुम नहीं होगे,
महज़  ठहरे ही  रहने  से  फासले  कम नहीं होते,

ओढ़  कर  इश्क की चादर वो बैठें हैं अंजुमन में,
तकाज़े  इश्क  करने से  बिस्मिल पैहम नहीं होते,

जमाने भर की नाशादी सही जाती  हैं मुझसे पर,
तेरी   नाराजी   के   गर  वो   आलम  नहीं  होते,

शब-ए-गम की शाम तो कभी  काटे नहीं कटती ,
अगर  तुम  होते मेरे  संग  तो इतने गम नहीं होते,

मुसलसल वक्त जब जब था मुलाकातों का उनसेे,
कभी फिर तुम नहीं होते कभी फिर हम नहीं होते,

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