Sunday 1 May 2016

"गुमनाम समंदर"

होठों   से   बयाँ   होता  है  आँखों    का   दर्द    सुनहरा,
जब  अश्क  रूठ  जाते  हैं   किसी  बेगाने की  यादों  में,

हर  दर्द  जवाँ  हो  जाता   बीते   हुये    हर  उस  पल सेें,
जिनकी  यादों की  कहानियाँ लिख गयी हैं वो आँचल से,

हर   बात  बयाँ   हो   जाती   आने   वाले   उस  कल  में,
खामोशी   का   चादर  ओढ़े  तन्हाई   के   हर  मन्जर  में,

बेनाम  सा चेहरा  याद  कभी जो आँखों  को आ  जाता है,
पलकों  से बहकर  आँसू  अधरों   से   जा  मिल  जाता है,

हर ख्वाब उसी से शुरू हुआ हर ख्वाब उसी पर  थमता है,
ख्वाबों का भी वो ख्वाब बना ख्वाबों में नहीं वो दिखता है,

भीगी  पलकों  पर  ख्वाब  समेंटे  रात  यूँ ही कट जाती हैं,
जब  इतंजार  की  घड़ियाँ  भी  इकरार  नहीं  ला  पाती हैं,

वो  नाम  रहे   गुमनाम   रहे  अधरों   से  भी  अन्जान रहे,
बस  दिल  के  हर इक कोने में उस की अपनी पहचान रहे,

इस  गुमनामी   के  समंदर  में  गुमनाम बात  वो  याद  रही,
याद  रहीं  वो  रात  वहीं  जिसमें  वो  ख्वाबों  में साथ  रही,

हर  बार  उसी   का  दोष  नहीं  हर  बार मैं भी निर्दोष नहीं,
हर बार इश्क की महफिल में उसके फरमानों का शोर नहीं,

हर   याद    संजोये    रखी   है  हर  साँस  संजोये  रखी  है,
तेरे      वापस    आने    की    हर  आश  संजोये   रखी   है,
                    - Ushesh Tripathi


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