Monday 2 May 2016

"हर बात ही हो लफ़्जों से बयाँ जरूरी तो नहीं"

हर बात ही हो लफ्जों से बयाँ ये जरूरी तो नहीं 'हुज़ूर',
दिल ए नादाँ की कुछ सदायें तुम भी तो  सुनना सीखो,

हर   नज्म़  में   करता  हूँ  मैं   बस   तेरी   ही   तारीफ,
मेरी    नज्मों    को    तुम    भी    तो    पढ़ना   सीखो,

लगता है  बहुत  कर  ली  है अदावत से मोहब्बत तुमने,
कभी जंग-ए-मोहब्बत  में  तुम  भी  तो  उतरना  सीखो,

महफिलों में मिलते ही  नज़रे  झुक  सी  जाती  हैं  तेरी,
कभी नज़रों की महफिलों में  तुम भी तो चढ़ना  सीखो,

राज-दाँ है ज़माना सदियों से तिरी औ मिरी मोहब्बत का ,
'ज़नाब' इस   राज  को  तुम  भी   तो  अपनाना   सीखो ,

इश्क  के  मंजर  में  बंजर  हो  गये  कितने  चाहने  वाले,
इसी बहाने ही सही तुम मुड़ कर मेरा भी अफ़साना देखो,

खुश-चश्मों   को  तो बे-रंग  भी  सतरंग  नज़र  आता है,
कभी तुम भी तो  मेरी  बे-ज़ार  आँखों   का नजा़रा देखो,

मुझे तो  तलब सी  हो  गयी हैं  तुझे  ख्वाबों में  पाने  की ,
मेरे ख्वाबों को भी तो अपनी पलकों  पर  सजाना सीखो,

हम  तो  मोहब्बत में  तेरी ज़फाओं तक को   निभाते  रहे,
मोहब्बत  में   अकीदत  को  तुम  भी  तो  निभाना सीखो,

                                           - उषेश त्रिपाठी

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