काली घटायें हैं बादल में ,
धीमी हवायें हैं सागर में ,
भीनी सुगन्ध है माटी की ,
करती आकर्षित घाटी को,
तुम कहाँ छुपे हो इस पल में ,
जब पुरानी यादें हैं आँचल में
अब काली घटायें भी नहीं रहीं ,
सागर भी उठ के सिमट गया,
जाने वाले सब चले गये ,
पर याद तेरी क्यों जाती नहीं,
हवायें थी घटायें थी ,
थी तेरे न होने की तन्हाई भी ,
आवाम भी थी आवाज भी थी ,
थी हवाओं की पुरवाई भी ,
कुछ बेगाने थे कुछ अपने थे ,
थे उनमें सिमटें कुछ सपने भी ,
मन की सुन्दरता भी थी ,
तन में व्याकुलता भी थी ,
मन व्याकुल था तुझसे मिलने को ,
तेरे ख्वाबों में मर मिटने को ,
तेरे दीदार का साया था मुझपे ,
संसार समाया था तुझमें ,
जग को पाने की रार नहीं ,
तेरे जाने से हार हुई ,
अब इस पल में तुम कहाँ गयें ,
अब अन्तकाल में कहाँ गये ,
तुमको खोजों मैं इधर उधर ,
तुम मिलते मुझको शहर शहर ,
- Ushesh
धीमी हवायें हैं सागर में ,
भीनी सुगन्ध है माटी की ,
करती आकर्षित घाटी को,
तुम कहाँ छुपे हो इस पल में ,
जब पुरानी यादें हैं आँचल में
अब काली घटायें भी नहीं रहीं ,
सागर भी उठ के सिमट गया,
जाने वाले सब चले गये ,
पर याद तेरी क्यों जाती नहीं,
हवायें थी घटायें थी ,
थी तेरे न होने की तन्हाई भी ,
आवाम भी थी आवाज भी थी ,
थी हवाओं की पुरवाई भी ,
कुछ बेगाने थे कुछ अपने थे ,
थे उनमें सिमटें कुछ सपने भी ,
मन की सुन्दरता भी थी ,
तन में व्याकुलता भी थी ,
मन व्याकुल था तुझसे मिलने को ,
तेरे ख्वाबों में मर मिटने को ,
तेरे दीदार का साया था मुझपे ,
संसार समाया था तुझमें ,
जग को पाने की रार नहीं ,
तेरे जाने से हार हुई ,
अब इस पल में तुम कहाँ गयें ,
अब अन्तकाल में कहाँ गये ,
तुमको खोजों मैं इधर उधर ,
तुम मिलते मुझको शहर शहर ,
- Ushesh
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