"ख्य़ाल-आजाद परिन्दों का"

कुछ लोग ख्यालों में उड़ते हैं, कुछ के ख्या़ल भी उड़ते हैं, मैं आजाद परिन्दा हूँ , ख्वाबों की डोर को बुनता हूँ,

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Saturday, 7 May 2016

ताबीर

भरे महफिल में मेरे इश्क की वो इस कदर ताबीर करता हैं,
कि   अब  तो  हर  गली  में  सब  मुझे  ही  पीर  कहता  हैं,
Posted by Unknown at 13:55:00
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